वैश्विक तनाव : तेल की हालत पतली, मांग के पूर्वानुमान में कटौती, भारत पर पड़ेगा ये असर

इंडिया मंक ब्यूरो

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ते तनावों और अमेरिकी टैरिफ नीतियों के चलते वैश्विक तेल मांग में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी #IEA ने 2025 के लिए तेल मांग वृद्धि का अनुमान घटाकर 7.3 लाख बैरल प्रतिदिन कर दिया है, जो पहले के मुकाबले काफी कम है। इसी प्रकार #OPEC ने भी अपना अनुमान घटाकर 1.3 मिलियन बैरल प्रतिदिन कर दिया है।

क्या है कारण? 

#IEA का कहना है कि अमेरिका और चीन में कमजोर मांग, वैश्विक आर्थिक सुस्ती और एशियाई निर्यात आधारित अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव इसके प्रमुख कारण हैं। यह मांग में कमी 2020 के कोविड काल के बाद सबसे धीमी मानी जा रही है।

भारत पर प्रभाव: अल्पकालिक बल्ले बल्ले, लेकिन…

भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है और अपनी कुल तेल जरूरतों का लगभग 85% आयात पर निर्भर करता है। वैश्विक मांग में कमी से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट भारत के लिए एक राहत का संकेत हो सकता है, खासकर चालू खाता घाटा और महंगाई नियंत्रण के संदर्भ में।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यदि व्यापार तनाव लम्बे समय तक जारी रहते हैं, तो वैश्विक निवेश और आर्थिक गतिविधि में मंदी आ सकती है, जिसका असर भारत के निर्यात, एफडीआई और आर्थिक विकास दर पर भी पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, ऊर्जा कंपनियों के निवेश निर्णय, खासकर रिफाइनिंग और एक्सप्लोरेशन सेक्टर में, इस अनिश्चितता से प्रभावित हो सकते हैं।

नीतिगत दिशा

 ऐसे समय में भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह ऊर्जा आपूर्ति में विविधता लाए, वैकल्पिक स्रोतों जैसे हरित हाइड्रोजन, सोलर और बायोफ्यूल्स पर निवेश बढ़ाए और वैश्विक बाजारों में अस्थिरता से निपटने के लिए रणनीतिक तेल भंडार की क्षमता को मजबूत करे।

वास्तव में तेल की मांग में वैश्विक गिरावट और कीमतों में संभावित नरमी भारत के लिए अल्पकालिक अवसर जरूर हो सकते हैं, लेकिन लम्बी अवधि के लिए यह जरूरी नहीं अच्छा ही हो। यह भारत के लिए इस अर्थ में एक सतर्कता का संकेत है कि वैश्विक अनिश्चितताओं के चलते घरेलू नीतियों को बहुत हद तक बदलने की जरूरत पड़ सकती है।

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